Friday, April 20, 2012

ग़ज़ल




प्रिय मित्रो, ब्रेक के बाद एक बार फिर आपके सम्मुख उपस्थित हूँ… इस बार इतनी देर हो गयी कि क्षमा मांगने की भी हिम्मत नहीं पड़ रही है। बहरहाल तीन ग़ज़लें प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपकी प्रतिक्रिया की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी..



1.
पूरा परिवार एक कमरे में
कितने संसार एक कमरे में

हो नहीं पाया बड़े सपनो का
छोटा आकार एक कमरे में

शोरगुल नींद पढ़ाई टी वी
रोज़ तकरार एक कमरे में

ज़िक्र दादा की उस हवेली का
सैकड़ों बार एक कमरे में

एक घर हर किसी की आँखों में
जिसका विस्तार एक कमरे में


2.
खूब हसरत से कोई प्यारा-सा सपना देखे
फिर भला कैसे उसी सपने को मरता देखे

अपने कट जाने से बढ़कर ये फ़िक्र पेड़ को है
घर परिंदों का भला कैसे उजड़ता देखे

मुश्किलें अपनी बढ़ा लेता है इन्सां यूँ भी
अपनी गर्दन पे किसी और का चेहरा देखे

बस ये ख्वाहिश है, सियासत की, कि इंसानों को
ज़ात या नस्ल या मज़हब में ही बंटता देखे

जुर्म ख़ुद आके मिटाऊंगा कहा था, लेकिन
तू तो आकाश पे बैठा ही तमाशा देखे

छू के देखे तो कोई मेरे वतन की सरहद
और फिर अपनी वो जुर्रत का नतीजा देखे


3.
दर्द जब बेजुबान होता है
कोई शोला जवान होता है

आग बस्ती में सुलगती हो कहीं
खौफ में हर मकान होता है

बाज आओ कि जोखिमों से भरा
सब्र का इम्तिहान होता है

ज्वार-भाटे में कौन बचता है
हर लहर पर उफान होता है

जुगनुओं की चमक से लोगों को
रोशनी का गुमान होता है

वायदे उनके खूबसूरत हैं
दिल को कम इत्मिनान होता है
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11 comments:

JitenderJamwal said...

bahut khoob sir....behtareen ghazalein....bahut shukriya.

ARUN MISHRA said...

ग़ज़ल 1, बहुत अच्छी लगी|बेहद चुस्त |
शानदार|काबिले तारीफ़|
ग़ज़ल 3, के भी कई शेर असर पैदा करने वाले हैं|
बधाई एवं शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.

मनोज अबोध said...

आह...क्‍या बात है ।।। एक कमरे का चित्रण ग़ज़ल में इतनी चुस्‍ती और रवानगी के साथ विस्‍तृत केनवस पर पहली बार हुआ है । जय हो ।।।

मनोज अबोध said...

दूसरी और तीसरी ग़ज़ल भी बहुत सुन्‍दर हैं । सपने का मतअला जुबान का है । चौथे शेर का मिसरा हर लहर पाकर उफान होता है, एक बार फिर देख लें

mridula pradhan said...

bahut sunder likhe hain.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

'अपने कट जाने से बढ़कर ये फ़िक्र पेड़ को है
घर परिंदों का भला कैसे उजड़ता देखे', बहुत खूब कहा है वाजपेई जी. कहते रहिये!

Divik Ramesh said...

बहुत खूबसूरत मारक ग़ज़लें हॆं । वॆसे तो- पूरा परिवार एक कमरे में / ख़ुदा का प्यार एक कमरे में, जाने क्यों नहीं होता । दूसरी ग़ज़ल ने अधिक बेचॆन किया । अच्छी ग़ज़लों के लिए बधाई ।

pakheru said...

बहुत खूब लक्ष्मी भाई,छू लिया मन को,

' ख्वाब में छत भी है, दीवार भी और खिडकी भी,
ख्वाब मुट्ठी में है, और कैद है, एक कमरे में '

बधाई.

अशोक गुप्ता

ashok andrey said...
This comment has been removed by the author.
ashok andrey said...
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ashok andrey said...

aapki teeno gajlo ne gehra asar dalaa hai itni achchhi gajlo ko padvane ke liye aabhar.