Saturday, June 25, 2011

माहिया




प्रिय मित्रो गीतों पर आपकी मूल्यवान टिप्पणियों के लिए हृदय से आभार.. इस बार आपसे कुछ "माहिये" सांझा करना चाहता हूँ। ‘माहिया’ तीन पंक्तियों का छोटा सा छंद है जो १२-१०-१२ मात्राओं में रचा जाता है। आपकी टिप्पणियों की हमेशा की तरह प्रतीक्षा रहेगी ...
लक्ष्मीशंकर वाजपेयी


कुछ माहिये

इस दर्द की बस्ती में ..
खो जाऊं कैसे ..
अपनी ही मस्ती में ..



है कैसी डगर जीवन
ठोकर ही ठोकर
बस उलझन ही उलझन



जीवन वो कहानी है
जितना जान सके
उतनी अनजानी है


जीवन इक लोरी है
झूला सपनों का
औ वक़्त की डोरी है


क्या प्यार का जादू है !
सारी दिशाओं में
बस तेरी खुशबू है


वो भी दुःख ढोता है
बारिश के ज़रिये
ईश्वर भी रोता है


जब उम्र ये पूरी है ..
अमृत क्यूँ खोजूं ..
मरना भी ज़रूरी है


बस ये ही तरीका है .
दिल में रंग भरो
वरना सब फीका है