Monday, August 1, 2011

गीत




प्रिय मित्रो,
मेरे माहियों पर आपकी टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभार… इस बार अगस्त माह जो देश प्रेम की महक लेकर आता है, को देखते हुए अपने दो गीत आपसे सांझा कर रहा हूँ… आपकी मूल्यवान टिप्पणियों की हमेशा की तरह प्रतीक्षा रहेगी…
-लक्ष्मी शंकर वाजपेयी


एक
ऐ वतन के शहीदो नमन
सर झुकाता है तुमको वतन…

जिंदगी सामने थी खड़ी
लेके सौगातें कितनी बड़ी
सबको ठोकर लगा चल दिए
मौत का हंस के करने वरण

अपने पूरे ही परिवार के
तुम ही खुशियों के आधार थे
इक वतन की खुशी के लिए
हर खुशी तुम ने कर दी हवन

जो उठाई थी तुमने क़सम
देश की आन रक्खेंगे हम
अपने प्राणों की बाज़ी लगा
खूब तुमने निभाया वचन

अपने लहू से तुमने लिखा
इक महाकाव्य बलिदान का
पीढ़ियों तक जो सिखलाएगा
जीने मरने का सबको चलन ...

दो
माँ की ममता, फूल की खुशबू, बच्चे की मुस्कान का
सिर्फ़ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का

किसी पेड़ के नीचे आकर राही जब सुस्ताता है
पेड़ नहीं पूछे है किस मज़हब से तेरा नाता है
धूप गुनगुनाहट देती है चाहे जिसका आँगन हो
जो भी प्यासा आ जाता है, पानी प्यास बुझाता है
मिट्टी फसल उगाये पूछे धर्म न किसी किसान का ...

ये श्रम युग है जिसमे सबका संग-संग बहे पसीना है
साथ-साथ हंसना मुस्काना संग-संग आंसू पीना है
एक समस्याएँ हैं सबकी जाति धर्म चाहे कुछ हो
सब इंसान बराबर सबका एक सा मरना जीना है
बेमानी हर ढंग पुराना इंसानी पहचान का ...

किसी प्रांत का रहनेवाला या कोई मज़हब वाला
कोई भाषा हो कैसी भी रीति रिवाजों का ढाला
चाहे जैसा खान-पान हो रहन सहन पहनावा हो
जिसको भी इस देश की मिट्टी और हवाओं ने पाला
है ये हिन्दुस्तान उसी का और वो हिन्दुस्तान का
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