
प्रिय मित्रो, पिछ्ली पोस्ट में छ्पी ग़ज़लों पर आपकी प्रतिक्रियायों के लिए आभार… इस बार दो ताज़ा ग़ज़लें प्रस्तुत हैं। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
-लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
दो ग़ज़लें
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1
ज़हर से जैसे वो अमृत निकाल देता है..
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है
अवाम आँखे बिछाता है कि हल होंगे सवाल
अजब निज़ाम है उलटे सवाल देता है
हमेशा ख़ुद पे लगी तोहमतें छुपाने को
वो अपने रौब का सिक्का उछाल देता है .
ख़ुद ही फँस जाते हैं आ आ के परिंदे उसमे
इतने रंगीन वो रेशम के जाल देता है
उसी को सौंप दो सारी मुसीबतें अपनी
वो एक लम्हे में सब कुछ संभाल देता है
वो ज़ुल्म करते रहें हम कोई गिला न करें
ये एहतियात तो मुश्किल में डाल देता है
उसी को मिलते हैं मोती भी यक़ीनन इक दिन
जो गहरे जा के समंदर खंगाल देता है
जो अपने वक़्त में नफ़रत से मार डाले गए
उन्ही की आज ज़माना मिसाल देता है
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भीगे थे साथ साथ कभी जिस फुहार में
ये उम्र कट रही है उसी के खुमार में
तकते हैं खड़े दूर से सैलाब के मारे
मग़रूर नदी आयेगी कब तक उतार में
मजबूर थी बिचारी दिहाड़ी की वजह से
आई तड़पता छोड़ के बच्चा बुखार में
ये साज़ भी इंसानी हुनर की मिसाल हैं
संगीत उतर आता है लोहे के तार में
अपराध पल रहा है सियासत की गोद में
बच्चा बिगड़ने लगता है ज्यादा दुलार में
फ़रियाद अगर रब ने तुम्हारी नहीं सुनी
कोई कमी तो होगी तुम्हारी पुकार में
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15 comments:
आपकी गजले नियमित रूप से पढ़ जाती हूं, जब भी आती हैं, पर समय की कंजुसी कहिए या आलस अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा पाती....
आपकी ये दो गज़ले भी बहुत पसंद आईं।
एक एक शेर कभी ना भुल सके ऐसे बनाएं हैं।
इन चुनिंदा रत्नों को हमसे बांटने के लिए शुक्रिया
दोनो खूबसूरत हैं। आपकी कहन ही उम्दा होती है।
फ़रियाद अगर रब ने तुम्हारी नहीं सुनी
कोई कमी तो होगी तुम्हारी पुकार में
Shayad aisaa hee hota hai!
aapki dono gajlen bahut he umda tatha gehre bhavon men pagi huee hain-
avaam aankhen bichhata hai ki hal honge sawaal
ajab nijaam hai ulte sawaal deta hai.
mun ko chhuti in dono gajlon ke liye badhai.
दूसरी ग़ज़ल तो वाक़ई बहुत अच्छी कही गई है. अलबत्ता क्षमा चाहता हूं और यह कहने की गुस्ताखी कर रहा हूं कि पहली ग़ज़ल का एक शेर "उसी को सौंप..." रसभंग कर रहा है. हालांकि ग़ज़ल में शास्त्रीय तौर पर यह कोई दोष नहीं माना जाता, लेकिन यह शेर अगर अंतिम से पहले आता तो एक अलग अर्थ देता.
ज़हर से जैसे वो अमृत निकाल देता है..
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है
उम्दा शे'र कहा है
ज़हर से जैसे वो अमृत निकाल देता है..
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है
bahot achchi lagi ye pangtiyan.....
लाजवाब। कमाल का लिखा है।
ओह...एक एक शेर ऐसे मन को बांधे ले रही थी,कि आगे बढ़ना मुश्किल होया गया था...
बेहतरीन ग़ज़ल रची है आपने...दोनों की दोनों...
बस मन मुग्ध हो गया...
आभार पढवाने के लिए...
वे अपने रोब का सिक्का उछाल देता है..इस पंक्ति में जैसे आपने हरेक भावुक मन की बात कह दी। अच्छी गजलें। पढवाने का शुक्रिया। कुछ पल के लिए खुद को भूल जाते हैं।
गीताश्री
Pyare Bhai,
Behtreen Shairon se bharin dono Ghazalon ko pad kar apki is aamad ko mubarkbaad...In dino San Diego, USA mein hoon...Dec. main miloonga
Hareram Sameep
ज़हर से जैसे वो अमृत निकाल देता है..
दरख़्त धूप को साए में ढाल देता है
वाह...वाह.....मतला तो कमाल का है ....
हमेशा ख़ुद पे लगी तोहमतें छुपाने को
वो अपने रौब का सिक्का उछाल देता है .
ये तो हम औरतों के लिए वाजिब है ...))
ख़ुद ही फँस जाते हैं आ आ के परिंदे उसमे
इतने रंगीन वो रेशम के जाल देता है
सुभानाल्लाह.....
देखिये न हम भी आपके जाल में आ गए ...
इतनी खूबसूरत गजलें देख ......:))
उसी को सौंप दो सारी मुसीबतें अपनी
वो एक लम्हे में सब कुछ संभाल देता है
...
क्या बात है ....
रब्ब पर विश्वास हो तो मुसीबत मुसीबत न लगे ....
उसी को मिलते हैं मोती भी यक़ीनन इक दिन
जो गहरे जा के समंदर खंगाल देता है
जी कोशिश जारी है ....))
पर aap तो मोती निकाल लाये .....:))
दूसरी पे फिर आऊंगी .....:))
दोनों ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं .....साधुवाद.
pahali bar aapke is blog par aai hoon.aapki dono gazalen bahut achchi hai.badhi . bahut sal pahale hans me meri ek laghu katha 'status' padh kar aap ki bahut achchi pratikriya aai thi maine javab bhi diya tha par tab aapke kavi hone ki jankari mujhe nahi thi.
गज़ब की शायरी है भाई साहब । बधाई । दूसरी ग़ज़ल में कमाल की मंज़कशी है मतअले में...वाह मज़ा आ गया ।
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