
प्रिय मित्रो गीतों पर आपकी मूल्यवान टिप्पणियों के लिए हृदय से आभार.. इस बार आपसे कुछ "माहिये" सांझा करना चाहता हूँ। ‘माहिया’ तीन पंक्तियों का छोटा सा छंद है जो १२-१०-१२ मात्राओं में रचा जाता है। आपकी टिप्पणियों की हमेशा की तरह प्रतीक्षा रहेगी ...
लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
कुछ माहिये
इस दर्द की बस्ती में ..
खो जाऊं कैसे ..
अपनी ही मस्ती में ..
इस दर्द की बस्ती में ..
खो जाऊं कैसे ..
अपनी ही मस्ती में ..
है कैसी डगर जीवन
ठोकर ही ठोकर
बस उलझन ही उलझन
ठोकर ही ठोकर
बस उलझन ही उलझन
जीवन वो कहानी है
जितना जान सके
उतनी अनजानी है
जितना जान सके
उतनी अनजानी है
जीवन इक लोरी है
झूला सपनों का
औ वक़्त की डोरी है
झूला सपनों का
औ वक़्त की डोरी है
क्या प्यार का जादू है !
सारी दिशाओं में
बस तेरी खुशबू है
सारी दिशाओं में
बस तेरी खुशबू है
वो भी दुःख ढोता है
बारिश के ज़रिये
ईश्वर भी रोता है
बारिश के ज़रिये
ईश्वर भी रोता है
जब उम्र ये पूरी है ..
अमृत क्यूँ खोजूं ..
मरना भी ज़रूरी है
अमृत क्यूँ खोजूं ..
मरना भी ज़रूरी है
बस ये ही तरीका है .
दिल में रंग भरो
वरना सब फीका है
दिल में रंग भरो
वरना सब फीका है
36 comments:
bahut sundar !
Kuchh haiku jaise hain na sir ye maahiye !
achhe lage.
अतिउत्तम हर माहिये में आपने गज़ब के भाव भरे है. बहुत संवेदनशील. शुभकामनायें.
इधर 'माहिये' भी हिंदी कविता का एक ज़रूरी हिस्सा बन गए हैं। 'माहिये' लिखने का प्रचलन तेज़ी से बढ़ा है। 12-10-12 मात्राओं में केवल तुकबन्दी के तौर पर कुछ भी लिख देना 'माहिया' नहीं है। उसके लिए कोई विचार, कोई अनौखा भाव, कोई अनौखी बात होनी ज़रूरी दीख पड़ती है, कविता के इस रूप के लिए। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी के ये माहिये इसी तरफ़ इशारा कर रहे हैं। अब यह माहिया ही लें-
वो भी दु:ख ढोता है
बारिश के ज़रिये
ईश्वर भी रोता है
यह महज 12-10-12 मात्राओं में तुकबन्दी नहीं है, एक सधे हुए बेहतरीन माहिये की पहचान है। इसके पीछे कवि का चिंतन और उसकी गहरी सोच के दर्शन हमें होते हैं।
अन्त में 'बाबुषा' जी का प्रश्न जो उन्होंने वाजपेयी जी से किया है- बाबुषा जी माहिया और हाइकु पंक्तियों के हिसाब से भले ही एक समानता रखता प्रतीत होता हो, लेकिन है नहीं। 'हाइकु' में तीन पंक्तियां 5-7-5 वर्ण के अनुशासन में बंधी है जबकि 'माहिया' में यही तीन पंक्तियां 12-10-12 की मात्राओं में।
इतने सुन्दर माहियों के लिए भाई वाजपेयी जी को बधाई !
सारे के सारे माहिए शानदार हैं|तीन पंक्तियों के जादू| बधाई एवं शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
प्रणाम !
बाजपेयी साब !
पढ़े के बाद वो बात ज़हन में बात आती है देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर , वाकई दुष्कर कार्य है सिमित शब्दों में गहरी बात कहना , बधाई , ये विधा भी धीरे धीरे लेखन में अपनी जगह पुनः हासिल कर रही है . बधाई .
साधुवाद
सादर !
माहिये पढ्ने के बहाने आप को पूरा दोहरा लिया / प्रशंसा के लिए शब्द ना पहले जुटा पाया था , ना आज / निश्शब्द हमेशा की तरह ....!!
priya bhai bajpei jee aapke mahie ke madhyam se aapke nae andaaj ko dekhne ka mouka mila-
jeevan vo kahaani hai
jitnaa jaan sake
utnee anjaani hai,
tatha,
vo bhee dukh dhotaa hai
baarish ke jariye
ishwar bhee rotaa hai.
ati sundar, meri aur se badhai sweekaren.
AAPKE ` MAHIYE ` ( INHEN PANJABI
MEIN TAPPE BHEE KAHTE HAIN )
ACHCHHE LAGE HAIN . KUCHH SAAL
PAHLE MAINE BHEE TEES ,CHAALEES
MAHIYE LIKHE THE . VE NAYA
GYAANODAYA MEIN PRAKASHIT HUE THE .
बहुत सुन्दर माहिये रचे हैं आपने, वधाई ।
ati sunder
sare ke sare mahie atyant gahre ...dil ko chu lene wale ya yu kahe rome rome me bas jane wale ...babhai...
mamta kiran
पहले सूर्यभानु गुप्त ने त्रिपदी लिखी, फिर गुलज़ार की त्रिवेणी दिखाई पड़ी और अब आपके तीन लाइनों के माहिए। अदब की दुनिया में ये सिलसिला सार्थक और शानदार है। इसे आगे बढ़ाइए।
देवमणि पांडेय (मुम्बई)
लक्ष्मी शंकर जी
बहुत ही उम्दा गहराई और गीराई लिए हुए अर्थ के साथ आपकी शब्दावली
है कैसी डगर जीवन
ठोकर ही ठोकर
बस उलझन ही उलझन
शुभ्कमानों sahit
देवी नागरानी
Like this one.
जीवन इक लोरी है
झूला सपनों का
औ वक़्त की डोरी है
good luck with your poetry recital. Very busy with this evening's award ceremony at House of Lords, where we are honouring Prasoon Joshi and Javed Akhtar. There is a big strike and I am so stressed.
With all good wishes,
Divya Mathur FRSA
www.divyamathur.net
आपके प्रत्येक 'माहिया' में छन्द अनुशासन तो है ही ; लेकिन इसके प्राण तत्त्व लय और अबाध प्रवाह भी मौज़ूद है ।
काव्य-कौशल से पूर्ण आपके माहिये 'हाईकू'जैसे लगे -अंतर सिर्फ़ कलागत है ,पर पैनापन वही !
बेहद भावप्रवण व सधे हुए ।
बधाई !
जीवन इक लोरी है
झूला सपनों का
औ वक़्त की डोरी है
bahut sunder.....
लक्ष्मी शंकर जी, बहुत अच्छे लगे माहिये। पहली बार सुभाष नीरव जी की टिप्पणी के बाद दुबारा पढ़े और असली आनंद पाया बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण...बधाई...।
ब्लॉग जगत के मध्यम से इतनी सारी विधाओं के बारे में सीखने को मिल रहा है.धन्यवाद. हाइकू, हैगा, चोका, और अब माहिये.... सुभाष नीरव जी की टिप्पणी के माध्यम से माहिये के बारे में विस्तृत जानकारी मिली, धन्यवाद. यूँ तो सभी माहिये बहुत अच्छे हैं लेकिन..
जीवन वो कहानी है
जितना जान सके
उतनी अनजानी है
जीवन दर्शन को दर्शाता या माहिया बहुत अच्छा लगा.
और "अमृत क्यूँ खोजूं ../ मरना भी ज़रूरी है "
ये माहिया तो बस लाजवाब है.. सचमुच एक सार्थक सन्देश ....
सादर
मंजु
बहुत सुन्दर माहिया हैं, माहिया लोक छन्द है और लोक छन्द में लय और प्रवाह का बहुत महत्व है, वाजपेयी जी के माहिया आदर्श माहिया कहे जा सकते हैं, लयात्मकता और प्रवावाहात्मकता के साथ कविता यहाँ देखते ही बनती है, वधाई ।
किसी भी काव्य-विधा के व्याकरण को समझा जा सकता है. छंद को अभ्यास से सीखा या सिद्ध किया जा सकता है.मगर उसकी आत्मा को उसी गहराई और वातावरण में ही छुआ या पकडा़ जा सकता है. लोक काव्य विधा में तो यह बेहद चुनौतीपूर्ण है. बाजपेयी जी के ये माहिया, माहिया के मूल उत्स से आए हैं. बहुत सुंदर माहिया के लिये बहुत-बहुत बधाई, बाजपेयी जी.
बहुत ही उम्दा!
Dr Saraswati Mathur
बहुत ही उम्दा!
Dr Saraswati Mathur
बहुत अच्छे माहिया रचे हैं आपने, बधाई स्वीकारें
कल 17/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
ek se badhkar ek....
वाजपेयी जी बहुत कमाल के भावपूर्ण माहिया हैं आपके हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत सुंदर
अहा आपके माहिये का जवाब नहीं। हम सबों के लिए सीखने की बहुत चीजें हैं
बहुत सुंदर माहिया टप्पे
वाह अति सुन्दर 👌👌👌
दूसरे माहिया की पहली पंक्ति में 13 मात्राएं हैं
प्रस्तुत माहिया छंद विधान सम्मत नहीं है। कृपया मात्राएँ चेक कीजिये। लोग जबरदस्ती वाहवाही कर रहे हैं।
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