
मित्रो, एक बार पुन: विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ। इस बार मैं अलग-अलग रंग के अपने कुछ दोहे प्रस्तुत कर रहा हूँ। हमेशा की तरह आपकी मूल्यवान प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
ये मन के विश्वास हैं या हैं मन के रोग
क्या क्या भ्रम पाले हुए उम्र गंवाते लोग
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जब जब देखूँ डिग्रियाँ दिखते हैं हर बार
अम्मा के गिरवी रखे पायल,कंगन, हार
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इस युग में संबंध भी लगते ज्यूँ अनुबंध
जितनी हो उपयोगिता, बस उतने संबंध
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फ़न के सौदे ख़ूब कर लेकिन रख अहसास
अलग तकाज़े पेट के, अलग रूह की प्यास
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दफ़्तर से घर आ गए दोनों ही थक हार
पत्नी ढूँढ़े केतली, पति ढूँढ़े अख़बार
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मैंने ‘कन्यादान’ की तज दी रीति महान
बेटी क्या इक वस्तु है ! कर दूँ जिसका दान
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करता तेरी देह का हर पल कारोबार
नारी तेरी मुक्ति का दुश्मन है बाज़ार
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फ़ैशन, ग्लैमर नाम के कुछ भ्रम हैं रंगीन
लक्ष्य एक, हो किस तरह, नारी वस्त्रविहीन
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इंटरनेट से वो करे दुनिया भर से बात
रहता कौन पड़ोस में, उसे नहीं है ज्ञात
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10 comments:
"इंटरनेट से वो करे दुनिया भर से बात
रहता कौन पड़ोस में,उसे नहीं है ज्ञात"
"अलग तकाज़े पेट के,अलग रूह की प्यास"
"अम्मा के गिरवी रखे पायल,कंगन हार"
"पत्नी ढूँढ़े केतली,पति ढूँढ़े अख़बार"
अत्यंत सशक्त अभिवाक्तियाँ,अत्यंत शानदार दोहे| नवसंवत्सर आपकी काव्य-प्रतिभा को नई ऊँचाइयाँ दे|
शुभकामनायें!
-अरुण मिश्र.
Vajpayee jee in dohon ko padh kar aanand aa gaya.Aapka dhanyavad.
waise to sabhi bahut achche hain par ye kuch khas hai...
इस युग में संबंध भी लगते ज्यूँ अनुबंध
जितनी हो उपयोगिता, बस उतने संबंध
बेहद शानदार दोहे....
आपके दोहे सच्चे, अच्छे और सामयिक लगे। बधाई।
शानदार दोहे....
bajpaiyaa ke dohre ,jivan kee saugaat ,
seedhi sachchi baat hi karten hain din-rat .
veerubhai.
इंटरनेट से वो करे दुनिया भर से बात
रहता कौन पड़ोस में, उसे नहीं है ज्ञात
wah.kitni badi sachchayee se samna karwa diya aapne.
बहुत सुन्दर दोहे हैं। विशेष रूप से यह दोहा-
" दफ़्तर से घर आ गए दोनों ही थक हार
पत्नी ढूँढ़े केतली, पति ढूँढ़े अख़बार । "
कितनी सादगी और सहजता से एक सोच और प्रवृत्ति का जीवंत चित्रण कवि द्वारा कर दिया गया है। ऐसे दोहे ही यह सिद्ध करते हैं कि रचनाकार का भाषा पर पूरा अधिकार है, वह बोलचाल की भाषा में भी इतनी बड़ी बात कह सकता है। ऐसे दोहे कभी कभी ही लिखे जा सकते हैं और जब लिख जाते हैं तो वे लोगों की ज़वान पर चढ़कर बोलते हैं। वधई वाजपेई जी।
-डा० जगदीश व्योम
जब जब देखूँ डिग्रियाँ दिखते हैं हर बार
अम्मा के गिरवी रखे पायल,कंगन, हार
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इस युग में संबंध भी लगते ज्यूँ अनुबंध
जितनी हो उपयोगिता, बस उतने संबंध
दोनों अति मार्मिक दोहे.
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