
मित्रो, एक बार पुन: विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ। इस बार मैं अलग-अलग रंग के अपने कुछ दोहे प्रस्तुत कर रहा हूँ। हमेशा की तरह आपकी मूल्यवान प्रतिक्रियाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
ये मन के विश्वास हैं या हैं मन के रोग
क्या क्या भ्रम पाले हुए उम्र गंवाते लोग
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जब जब देखूँ डिग्रियाँ दिखते हैं हर बार
अम्मा के गिरवी रखे पायल,कंगन, हार
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इस युग में संबंध भी लगते ज्यूँ अनुबंध
जितनी हो उपयोगिता, बस उतने संबंध
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फ़न के सौदे ख़ूब कर लेकिन रख अहसास
अलग तकाज़े पेट के, अलग रूह की प्यास
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दफ़्तर से घर आ गए दोनों ही थक हार
पत्नी ढूँढ़े केतली, पति ढूँढ़े अख़बार
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मैंने ‘कन्यादान’ की तज दी रीति महान
बेटी क्या इक वस्तु है ! कर दूँ जिसका दान
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करता तेरी देह का हर पल कारोबार
नारी तेरी मुक्ति का दुश्मन है बाज़ार
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फ़ैशन, ग्लैमर नाम के कुछ भ्रम हैं रंगीन
लक्ष्य एक, हो किस तरह, नारी वस्त्रविहीन
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इंटरनेट से वो करे दुनिया भर से बात
रहता कौन पड़ोस में, उसे नहीं है ज्ञात
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