
प्रिय मित्रो
हाइकु कविताओं पर आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए आभार… इस बार छोटी बहर की तीन ग़ज़लें… आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी…
- लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
तीन ग़ज़लें
1
तू है बादल
तो, बरसा जल
महल के नीचे
मीलों दलदल
एक शून्य को
कितनी हलचल
नाम ही माँ का
है गंगा जल
छाँव है ठंडी
तेरा आँचल
नन्ही बिटिया
नदिया कलकल
तेरी यादें
महकें हर पल
और पुकारो
खुलेगी सांकल
2
अमन का नया सिलसिला चाहता हूँ
जो सबका हो ऐसा खुदा चाहता हूँ
जो बीमार माहौल को ताजगी दे
वतन के लिए वो हवा चाहता हूँ
कहा उसने धत इस निराली अदा से
मैं दोहराना फिर वो ख़ता चाहता हूँ
तू सचमुच ख़ुदा है तो फिर क्या बताना
तुझे सब पता है मैं क्या चाहता हूँ
मुझे ग़म ही बांटे मुक़द्दर ने लेकिन
मैं सबको ख़ुशी बांटना चाहता हूँ
बहुत हो चुका छुप के डर डर के जीना
सितमगर से अब सामना चाहता हूँ
किसी को भंवर में न ले जाने पाए
मैं दरिया का रुख़ मोड़ना चाहता हूँ
3
खूब नारे उछाले गए
लोग बातों में टाले गए
जो अंधेरों में पाले गए
दूर तक वो उजाले गए
जिनसे घर में उजाले हुए
वो ही घर से निकाले गए
जिनके मन में कोई चोर था
वो नियम से शिवाले गए
पाँव जितना चले उनसे भी
दूर पांवों के छाले गए
इक ज़रा सी मुलाक़ात के
कितने मतलब निकले गए
कौन साज़िश में शामिल हुए
किनके मुंह के निवाले गए
अब ये ताज़ा अँधेरे जियो
कल के बासी उजाले गए