मित्रो,
इस बार मैं दो अलग अलग रंग के गीत आपसे साँझा कर रहा हूँ … आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी ..
-लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
दो गीत
(1)
कभी कभी जीवन में ऐसे भी कुछ क्षण आये
कहना चाहा पर होठों से बोल नहीं फूटे…
महज़ औपचारिकता अक्सर
होठों तक आयी
रहा अनकहा जो उसको,
बस नज़र समझ पायी
कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में
और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे ...
जिनसे न था खून का नाता,
रिश्तों का बंधन
कितना सारा प्यार दे गए
कितना अपनापन
कभी कभी उन रिश्तों को कुछ नाम न दे पाए
जीवन भर जिनकी यादों के अक्स नहीं छूटे...
बोल नहीं फूटे ...
(2)
क़दम क़दम दहशत के साए !
जीते हैं भगवान भरोसे ..
इस दूषित मिलावटी युग में, जो साँसें लीं या जो खाया
नहीं पता जाने अनजाने, दिन भर कितना ज़हर पचाया
हद तो ये है दवा न जाने राहत दे या मौत परोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
घर से बाहर क़दम पड़े तो शंकित मन घबराए
घर में माँ पत्नी पल पल देवी देवता मनाये
सड़क निगल जाती है पल में बरसों के जो पाले पोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
नहीं पता कब कहाँ दरिंदा बैठा घात लगाए
हँसते गाते जीवन के चिथड़े चिथड़े कर जाए
एक धमाका छुपा हुआ लगता है गोशे गोशे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
रोज़ हादसों की सूची पढ़ सुन कर मन डर जाए
बहुत बड़ी उपलब्धि मृत्यु जो स्वाभाविक मिल जाए
आम आदमी के वश में बस जिसको जितना चाहे कोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
00
कभी कभी जीवन में ऐसे भी कुछ क्षण आये
कहना चाहा पर होठों से बोल नहीं फूटे…
महज़ औपचारिकता अक्सर
होठों तक आयी
रहा अनकहा जो उसको,
बस नज़र समझ पायी
कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में
और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे ...
जिनसे न था खून का नाता,
रिश्तों का बंधन
कितना सारा प्यार दे गए
कितना अपनापन
कभी कभी उन रिश्तों को कुछ नाम न दे पाए
जीवन भर जिनकी यादों के अक्स नहीं छूटे...
बोल नहीं फूटे ...
(2)
क़दम क़दम दहशत के साए !
जीते हैं भगवान भरोसे ..
इस दूषित मिलावटी युग में, जो साँसें लीं या जो खाया
नहीं पता जाने अनजाने, दिन भर कितना ज़हर पचाया
हद तो ये है दवा न जाने राहत दे या मौत परोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
घर से बाहर क़दम पड़े तो शंकित मन घबराए
घर में माँ पत्नी पल पल देवी देवता मनाये
सड़क निगल जाती है पल में बरसों के जो पाले पोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
नहीं पता कब कहाँ दरिंदा बैठा घात लगाए
हँसते गाते जीवन के चिथड़े चिथड़े कर जाए
एक धमाका छुपा हुआ लगता है गोशे गोशे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
रोज़ हादसों की सूची पढ़ सुन कर मन डर जाए
बहुत बड़ी उपलब्धि मृत्यु जो स्वाभाविक मिल जाए
आम आदमी के वश में बस जिसको जितना चाहे कोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
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24 comments:
दोनों ही गीत बहुत सुन्दर लगे। दूसरा गीत तो वर्तमान समय की कटु सच्चाई को अभिव्यक्त कर रहा है। बधाई !
नमस्ते
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। दोनों ही गीत सच में अलग रंग लिए हैं।
आस्था नवल
दोनों ही गीत अलग रंग लिए हैं....बहुत सुन्दर लगे।
बधाई हो इन सुन्दर गीतो के लिए।
पहले गीत में कथ्य की नवीनता का अभाव है, शैली ठीक है। दूसरा गीत बहुत बढ़िया है।
aapka yah navgeet vastutah navgeet ke sarvkaalik tevaron aur sarokaaron kaa pratinidhitv karta hai. aadhunik yug men jab kavitaa ke saare roop sandigdh hote jaa rahe hain tab navgeet kee kshamtaaon par sahaj hi vishwas karne ki ichchha hoti hai. aapka yah navgeet is vishwaas ko bal deta hai. saadhuwad. ANANDKRISHAN, JABALPUR. MOBILE- 9425800818
'कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में
और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे ...' तथा 'बहुत बड़ी उपलब्धि मृत्यु जो स्वाभाविक मिल जाए' जैसी पंक्तियाँ सामान्यीकरण का अनुपम उदाहरण हैं। दोनों ही गीत सुन्दर हैं। हाँ, पहले में मंचीय पुट अधिक झलता है।
जिनसे न था खून का नाता,
रिश्तों का बंधन
कितना सारा प्यार दे गए
कितना अपनापन
bahut achchi lagi.....ye pangtiyan.
अत्यन्त भावस्पर्शी गीत।
इस दूषित मिलावटी युग में, जो साँसें लीं या जो खाया
नहीं पता जाने अनजाने, दिन भर कितना ज़हर पचाया
बिलकुल नई भावभूमि का बहुत अच्छा नवगीत है. अपने समय की विडंबना को बहुत क़रीने से चित्रित करता हुआ. बधाई!!
प्रिय बंधुवर, अद्भुत गीत प्रभाव उपज उठा है आपकी लेखनी से... मन की संवेदना और बाहर की चेतना, दोनों ही ध्रुवांत झंकृत हुए. कंठ से सस्वर सुनने का सुयोग मिला होता तो क्या बात थी... एक बात कहना चाहूँगा... प्रस्तुति में गीतों का क्रम बदल कर होता तो ज्यादा अच्छा लगता. कटु यथार्थ के ताप का प्रभाव पहले वाला गीत सहज मिटा देता और उसी की अनुगूँज फिर चलती रहती. खैर, इस भाव प्रवण भेंट के लिए साधुवाद. कुछ पंक्तियाँ लें;
पलक पलक अंकुरित सुगंध भावुकता की,
ओंठों पर, चिर संचित मौन,
भ्रम ही भ्रम व्यापक सा अणु अणु वातायन मं
ऐसे में फिर मुझका पहचाने कौन...?
अशोक गुप्ता
रोज़ हादसों की सूची पढ़ सुन कर मन डर जाए
बहुत बड़ी उपलब्धि मृत्यु जो स्वाभाविक मिल जाए
आम आदमी के वश में बस जिसको जितना चाहे कोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
दोनों ही गीत बहुत सुंदर हैं. शुभकामनायें.
aapke dono geeton ne kaaphi kuchh thode se shabdon me bahut kuchh keh diya hai. isi liye man ko chhoo gaye. badhai.
'कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में
और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे ...'
सुंदर पंक्तियाँ, अच्छा गीत|बधाई|
- अरुण मिश्र.
महज़ औपचारिकता अक्सर
होठों तक आयी
रहा अनकहा जो उसको,
बस नज़र समझ पायी
soch ke taane-bane shabdon mein aakar paakar geeton mein kalatmak kasavat aur bunavat ke mile jule sangam se ati sunder bhavpoorn rachna mein robaroo hue hai. apne vicharon ko abhivyakt karti sashakt abhivyakti ke liye shibhkamanyein v badhayi
Devi Nangrani
महज़ औपचारिकता अक्सर
होठों तक आयी
रहा अनकहा जो उसको,
बस नज़र समझ पायी
soch ke taane-bane shabdon mein aakar paakar geeton mein kalatmak kasavat aur bunavat ke mile jule sangam se ati sunder bhavpoorn rachna mein robaroo hue hai. apne vicharon ko abhivyakt karti sashakt abhivyakti ke liye shibhkamanyein v badhayi
Devi Nangrani
महज़ औपचारिकता अक्सर
होठों तक आयी
रहा अनकहा जो उसको,
बस नज़र समझ पायी
soch ke taane-bane shabdon mein aakar paakar geeton mein kalatmak kasavat aur bunavat ke mile jule sangam se ati sunder bhavpoorn rachna mein robaroo hue hai. apne vicharon ko abhivyakt karti sashakt abhivyakti ke liye shibhkamanyein v badhayi
Devi Nangrani
सही मायने में यही नवगीत हैं जो सच, समय और सवाल के साथ खड़े हैं। अगर ऐसे ही सहज, सरल और सारगर्भित गीत लिखे जाएं तो पाठकों से नजदीकियाँ बढ़ेंगी।
'कहना चाहा पर होठों से बोल नहीं फूटे' ये वही कविता है न सर ..जो कादम्बिनी में छपी थी ..और हम पत्र-मित्र बने थे. उन दिनों मैं स्कूल में थी. जी हाँ, मैं मोना हूँ ! और आज भी ये कविता मुझे रटी हुयी है ! :-)
im so proud dat i started my kavita y
tra under ur supervision kuch aacha hota hy to dil sy duyaey dyte hu'n
प्रणाम !
बाजपेयी साब !
रोज़ हादसों की सूची पढ़ सुन कर मन डर जाए
बहुत बड़ी उपलब्धि मृत्यु जो स्वाभाविक मिल जाए
आम आदमी के वश में बस जिसको जितना चाहे कोसे ..
जीते हैं भगवान भरोसे…
दोनों ही गीत बहुत सुंदर हैं. शुभकामनायें.
Abhi abhi hua hoon aapke kareeb. Lagta hai mano bahut door se kaafi paas aa gaya hoon. Aapke rache mahiye samay ki kuch tarango ko spandit kar rahe hein. phir jis tarah se rang aur noor inke gagan mandal me bikhra hai. use dekhkar mugdh hoon. Badhai evam saadhuwad.
aapke geet parh kar mere man men bhi geet umad rahaa hai. sundar, naye geet dene ke liye dhanyvaad..
दोनो गीत बहुत सुंदर हैं. बधाई.
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